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उद्‌घाटन समारोह

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हिन्दी राइटर्स गिल्ड का उद्घाटन समारोह

हिन्दी राइटर्स गिल्ड का उद्घाटन समारोह ’ओकविल लाइब्रेरी (सेन्ट्रल) थियेटर’ में साहित्यिक गरिमापूर्ण कार्यक्रम के साथ 9 अगस्त, 2008 को सम्पन्न हुआ। इस कार्यक्रम की गरिमा विशेष अतिथि डॉ. महीप सिंह की उपस्थिति से और भी बढ़ गई। डॉ. महीप सिंह न केवल एक प्रख्यात कहानीकार, उपन्यासकार और हिन्दी साहित्य के विद्वान हैं बल्कि साहित्य के प्रति उनकी प्रतिबद्धता भी प्रसिद्ध है। उन्होंने हिन्दी लेखन को आजीवन, विभिन्न ढंगों से प्रोत्साहित किया है - चाहे वह ’सचेतन कहानी’ आन्दोलन हो या ’संचेतना’ पत्रिका का कितने ही दशकों से निरन्तर प्रकाशन । चाहे वह “भारतीय लेखक संगठन” का गठन हो या ‘पंजाबी राइटर्स कोऑपरेटिव’ की सक्रिय अध्यक्षता। हिन्दी राइटर्स गिल्ड जैसी संस्था, जिसके उद्देश्य डॉ. महीप सिंह की विचारधारा के समानांतर हैं, के उद्घाटन के लिए शायद ही कोई इतना उपयुक्त साहित्यकार होता। लगभग 1:45 बजे कार्यक्रम आरम्भ करते हुए डॉ. शैलजा सक्सेना ने, जो इस संस्था की एक संस्थापक सदस्या हैं, उपस्थित श्रोताओं व लेखकों का स्वागत किया और मानोशी चैटर्जी को सरस्वती वन्दना गायन के लिए आमन्त्रित किया। मानोशी न केवल एक अच्छी लेखिका हैं, वे शास्त्रीय संगीत की निपुण गायिका भी हैं। डॉ. महीप सिंह के द्वारा “दीप प्रज्ज्वलन” के पश्चात् विजय विक्रान्त (संस्थापक सदस्य) ने मुख्य अतिथि का परिचय देते हुए उनका स्वागत किया। इसके पश्चात् विजय विक्रान्त ने डॉ. महीप सिंह को औपचारिक उद्घाटन करने व आशीर्वाद के कुछ शब्द कहने के लिए आमन्त्रित किया। डॉ. महीप सिंह ने कहा कि जो समाज अपनी मूलभूत जड़ों से जुड़ा रहता है वही समाज विकास कर पाता है। उन्होंने हिन्दी राइटर्स गिल्ड जैसी संस्था की स्थापना को इसी सन्दर्भ में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि कहा। उनके प्रोत्साहन भरे शब्दों के बाद कार्यक्रम का अगला चरण आरम्भ हुआ।
डॉ. शैलजा सक्सेना ने ‘पावर-प्वाइंट प्रेजन्टेशन’ के साथ उपस्थित श्रोताओं व दर्शकों को हिन्दी राइटर्स गिल्ड के उद्देश्य, गठन व कार्यविधि से परिचित करवाया। उन्होंने कहा कि यहाँ पर विभिन्न साहित्यक संगठनों के लगातार प्रयास से आज गिल्ड जैसी संस्था की आवश्यकता अनुभव होती है। हिन्दी राइटर्स गिल्ड एक लाभ निरपेक्ष (ओण्टेरियो पंजीकृत) संस्था है, जिसका उद्देश्य कैनेडा में हिन्दी साहित्य के प्रकाशन को प्रोत्साहित करना है। इस समय इण्डो-कैनेडियन लेखकों की पुस्तकें अधिकतर भारत में प्रकाशित होती हैं। इस प्रस्तुति के पश्चात् साहित्यिक कार्यक्रम आरम्भ हुआ। डॉ. शैलजा सक्सेना उद्भव से आधुनिक काल तक की हिन्दी साहित्य की यात्रा की सूत्रधार थीं। उन्होंने काव्य-यात्रा का आरम्भ कालिदास की संस्कृत कविता से किया और मानोशी चैटर्जी को मंच पर आमन्त्रित किया। मानोशी चैटर्जी ने कालिदास के ‘मेघदूत’ के कुछ श्लोकों का अपनी मधुर स्वर में गायन करते हुए उसका अनुवाद भी किया। इसके पश्चात् विजय विक्रान्त ने अमीर खुसरो की हिन्दी साहित्य को दी गई भेंट को बहुत ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया। डॉ. शैलजा सक्सेना ने लोक साहित्य के महत्व को रेखांकित करने के लिए इन्द्रा वर्मा को मंच पर आमन्त्रित किया जिन्होंने एक ‘चैती’ गाई। विभिन्न कालों व वादों से परिचित करवाते हुए डॉ. शैलजा सक्सेना यह काव्य-यात्रा आधुनिक काल तक ले आईं। उन्होंने निर्मल सिद्धू को मुक्तिबोध की कविता ‘अन्धेरे में’ का एक अंश पढ़ने के लिए आमन्त्रित किया। निर्मल सिद्धू ने इस अंश को पहले लाचार भाव से पढ़ा और फिर उसे ही आक्रोश भाव के साथ। एक ही अंश की दो अलग भावों की प्रस्तुतियाँ सुनकर कवि की रचना-मनःस्थिति का बोध हुआ। शैलजा जी ने हिन्दी साहित्य की फिल्मी जगत को देन को भी रेखांकित किया और भुवनेश्वरी पांडे ने “बन्दिनी” फिल्म का एक गीत सुनाकर इसे प्रमाणित किया। इसी यात्रा की अगली कड़ी, अनूदित साहित्य की, पाराशर गौड़ ने अपनी गढ़वाली कविता और उसके हिन्दी अनुवाद के पाठ के साथ जोड़ी। काव्य विधा का अन्त अगली पीढ़ी यानी बाल कविता के साथ हुआ। अनमोल सक्सेना ने सियाराम शरण गुप्त की कविता ‘हिमालय’ का काव्य-पाठ किया । आशा बर्मन ने महादेवी वर्मा के संस्मरण के साथ गद्य विधा का आरम्भ किया। समय बहुत तेजी से भागा जा रहा था। समय को ध्यान में रखते हुए लघुकथा की प्रस्तुति से पहले ही डॉ. महीप सिंह को कहानी विधा के विषय में बोलने के लिए और अपनी एक कहानी सुनाने के लिए आमन्त्रित किया गया। डॉ. साहिब ने बहुत विस्तार के साथ आधुनिक कहानी का इतिहास समझाया और कहा कि कविता की अपेक्षा कहानी काफी देर के बाद भारत में लिखी जानी शुरू हुई। पश्चिम के कई लेखकों के उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि किस तरह से हिन्दी कहानी उनसे एक कदम पीछे रही है। अपनी ’सचेतन’ कहानी के विषय में बोलते हुए उन्होंने कहा कि जब कहानी अमूर्त हो जाती है तो वह आज जनता में लोकप्रिय नहीं हो पाती। सचेतन कहानी इसी प्रक्रिया से बचने का एक प्रयास है। प्रवासी कहानी के महत्व को आज के जगत में उन्होंने रेखांकित करते हुए कहा कि भिन्नता जो विशिष्टता की दिशा में ले जाए वह स्वीकार्य होनी चाहिए। प्रवासी लेखकों को अपना कलापक्ष निखारने के लिए, भारत में रचे जा रहे आधुनिक साहित्य से परिचित होना चाहिए। उन्होंने अपनी ग्रंथावली में से “कितने सैलाब” कहानी का पाठ किया। इस समय तक संध्या के 4:45 हो चुके थे। अन्त में सुमन कुमार घई जी (संस्थापक सदस्य) ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। हिन्दी राइटर्स गिल्ड डॉ. महीप सिंह जी को धन्यवाद देती है कि भारत लौटने से केवल दो दिन पहले वे इस कार्यक्रम के लिए ओटवा से टोरोंटो आए। श्याम त्रिपाठी (संपादक हिन्दी चेतना) भी धन्यवाद के पात्र हैं जिन्होंने महीप सिंह जी की कैनेडा में उपस्थिति से हिन्दी राइटर्स गिल्ड को अवगत कराया। भूपिन्दर विरदी और मीना चोपड़ा ने निःशुल्क ’स्टार बज़्ज़’ में इस कार्यक्रम का विज्ञापन प्रकाशित किया, इसके लिए भी हिन्दी राइटर्स गिल्ड इस दम्पती की आभारी है। अन्त में उन अनेक निःस्वार्थ कार्यकर्ताओं का भी धन्यवाद, जिन्होंने इस कार्यक्रम को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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