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साहित्य के विकास में संगीत की भूमिका

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साहित्य के विकास में संगीत की भूमिका

हिन्दी राइटर्स गिल्ड कैनेडा का फेसबुक लाइव कार्यक्रम
हिन्दी राइटर्स गिल्ड कैनेडा ने 3 अप्रैल 2021 को एक और अत्यंत प्रभावशाली फेसबुक लाइव कार्यक्रम प्रस्तुत किया। यह आत्मीय बातचीत की 12 वीं कड़ी थी, जिसका विषय था 'साहित्य के विकास में संगीत की भूमिका'।
इस कार्यक्रम के आरंभ में डॉ. शैलजा सक्सेना जी ने सभी वक्ताओं तथा श्रोताओं का स्वागत किया। सभी वक्ताओं का परिचय देते हुए उन्होंने बताया कि संगीत हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है। संगीत हमारे मन-प्राण में है, हमारी साँसों के आरोह-अवरोह में भी है। हमारे शरीर में संगीत है, प्रकृति में संगीत है तथा साहित्य में संगीत समानांतर रूप से प्रवाहित होता ही रहता है।
इसके पश्चात् उन्होंने संचालन का भार मानोशी चटर्जी जी को सौंपते हुए उनका परिचय दिया कि वे कैनेडा की एक प्रसिद्ध लेखिका तथा संगीतकार हैं। यह भी बताया कि आज मानोशी जी इंद्रप्रस्थ कॉलेज की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. रेखा उप्रेती जी तथा श्रीमती रेखा धवन से बातचीत करेंगी। श्रीमती रेखा धवन एक प्रसिद्ध गायिका हैं जिन्होंने साहित्यिक रचनाओं को भावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया है।
मानोशी जी ने संगीत के संबंध में बताया कि भारतीय संगीत में नृत्य, वाद्य तथा संगीत तीनों ही आते हैं। उन्होंने संगीत, कला और ललित कला की परिभाषायें बतायीं। संगीत के इतिहास के तीन कालों का विस्तार से वर्णन किया। एक ओर जिस प्रकार मानोशी जी ने इस कार्यक्रम में संगीत के इतिहास की विशद चर्चा की, उसी प्रकार डॉक्टर रेखा उप्रेती जी ने हिन्दी साहित्य का इतिहास बताते हुए समय-समय इसमें संगीत के महत्व की चर्चा की। भारतीय साहित्य में किस प्रकार साहित्य और संगीत का संबंध प्राचीन काल से रहा है, इसके संबंध में भी बताया।
रेखा जी ने बताया कि भारतीय साहित्य में साहित्य और संगीत सहोदर के रूप में साथ-साथ रहे। जब तक लिपि का विकास नहीं हुआ था, साहित्य मौखिक रूप से श्रुति के रूप में ही विकसित होता रहा।
हिन्दी साहित्य के इतिहास की चर्चा करते हुए रेखा जी ने कहा कि हिन्दी साहित्य के भक्ति काल में सूरदास, तुलसीदास, मीराबाई, कबीरदास आदि भक्त कवियों के भजन जन-जन में प्रवाहित हुये। मानोशी जी के आग्रह पर श्रीमती रेखा धवन जी ने अपने मधुर स्वर में भजन प्रस्तुत किये। उन्होंने जयदेव के गीत गोविन्द से और उसके बाद कबीर दास जी का एक भजन सुनाकर श्रोताओं को मुग्ध कर किया।
इसके उपरान्त मानोशी जी ने आधुनिक काल की कविताओं के विषय में कहा कि यद्यपि आजकल कविताओं में संगीतात्मकता पहले की अपेक्षा कम हो गई है फिर भी आधुनिक काल में हिन्दी साहित्य के नवगीतों के लेखन ने साहित्य में एक बार पुनः संगीत की वृद्धि की है। उन्होंने बंगाल में संगीत के विकास की भी चर्चा की।
इसके पश्चात् मानोशी जी ने कार्यक्रम में चार चाँद लगाते हुए अपने मधुर स्वर में अपना एक अत्यंत ही सुंदर स्वरचित गीत प्रस्तुत किया, जिसकी पहली पंक्ति थी 'पतझड़ की पगलाई धूप '। शैलजा जी के आग्रह से रेखा उप्रेती जी ने भी अपने स्वर में एक मधुर लोक गीत प्रस्तुत किया जिसकी पंक्ति की ‘माँ मेरे बाबा को भेजो जी’।
इस कार्यक्रम की विशेषता यह रही कि इसमें साहित्य की चर्चा के साथ-साथ सुंदर गीत भी प्रस्तुत किए गए। पूरा कार्यक्रम एक आनंद की धार से परिपूर्ण था। इस कार्यक्रम को लगभग 5000 से अधिक व्यक्तियों ने फ़ेसबुक के माध्यम से देखा और प्रशंसा की। शैलजा जी द्वारा किया गया आरंभिक परिचय प्रभावशाली था और मानोशी जी का सञ्चालन भी। इस कार्यक्रम के आयोजन के लिए पूनम चंद्रा 'मनु' ने सुंदर फ़्लायर बनाकर सबको भेजा था।
अंत में, शैलजा जी ने भारतवर्ष से वैश्विक हिन्दी परिवार और अक्षरम, यूके से वातायन, सिंगापुर से कविताई, सभी सहयोगी संस्थाओं को इस कार्यक्रम के प्रचार में सहयोग देने के लिए धन्यवाद दिया। आज के इस कार्यक्रम ने निस्संदेह रूप से सभी श्रोताओं को एक स्पंदन, एक मधुर भाव तथा एक आनंद से भर दिया।
यदि आप अधिक विस्तार से इस कार्यक्रम को सुनना चाहें तो इस लिंक पर जाकर अवश्य सुनिएगा साहित्य में संगीत की यात्रा-शब्द और संगीत का मीठा संयोग।
प्रस्तुति - श्रीमती आशा बर्मन
इस कार्यक्रम का वीडियो देखने के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें: Click here

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