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रवाब

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हिन्दी राइटर्स गिल्ड द्वारा रबाब का लोकार्पण

21 फरवरी, 2009 – हिन्दी राइटर्स गिल्ड ने मिसीसागा में आज अपने दो सदस्यों की पुस्तकों का लोकार्पण किया। जसबीर कालरवि (रबाब) मूलतः पंजाबी के लेखक हैं। रबाब उनका पहला हिन्दी कविताओं का काव्य संग्रह है। दूसरे लेखक पाराशर गौड़ की पुस्तक “उकाल-उंदार” का लोकार्पण किया गया। “उकाल-उंदार” गढ़वाली की कविताओं और उनके हिन्दी अनुवाद का द्विभाषीय संकलन है; और इसी कारण से यह अनूठी पुस्तक है क्योंकि अभी तक भारत से बाहर प्रकाशित इस शैली की यह पहली पुस्तक है।
२१ फरवरी महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी का जन्मदिवस भी है। कार्यक्रम का आरम्भ भुवनेश्वरी पांडे ने निराला द्वारा रचित सरस्वती वंदना के गायन से आरम्भ किया। डॉ. शैलजा सक्सेना ने निराला जी के जन्मदिवस को रेखांकित करते हुए निराला की कविता “राम की शक्ति पूजा” का एक अंश का पाठ किया। उन्होंने संतोष और प्रसन्नता भी व्यक्त की ऐसे शुभ दिन हिन्दी राइटर्स गिल्ड पहली बार पुस्तकों का लोकार्पण कर रही है।
हिन्दी राइटर्स गिल्ड एक प्रगतिशील पंजीकृत लाभ-निरपेक्ष संस्था है। प्रगतिशील परंपरा को कायम रखते हुए डॉ. शैलजा सक्सेना ने दोनों कवियों को आमन्त्रित किया कि वह स्वयं अपनी पुस्तकों का लोकार्पण करें जो कि परम्परागत किसी अन्य प्रतिष्ठित व्यक्ति द्वारा किया जाता है। पुस्तकों के लोकार्पण के पश्चात् कवियों को फूल की भेंट की बजाय गिल्ड के दो सदस्यों अरुण बर्मन और राज महेश्वरी ने पुस्तकें भेंट में दीं।
पाराशर गौड़ ने हिन्दी राइटर्स गिल्ड को इस नये प्रयास की नींव डालने के लिए धन्यवाद और बधाई दी। उन्होंने कहा कि लोक भाषा को जिस तरह से विदेश में मान मिला है वैसा तो भारत में भी नहीं मिलता। इसके पश्चात् उन्होंने अपनी पुस्तक में से चार कविताओं का पाठ किया।
सुमन कुमार घई ने पुस्तक के विषय में बोलते हुए बताया कि इस पुस्तक के लेखन का काल १९६५ से १९७५ है। इस पुस्तक की अधिकतर कविताएँ उतरांचल की माँग के जनान्दोलन से उत्पन्न हुई हैं। कविताओं में आंचलिक आक्रोश, कुंठा और विवशता की अभिव्यक्ति है। पाराशर गौड़ का कवि के रूप में एक अपरिचित रूप है क्योंकि इस समय वह व्यंग्य-हास्य और कोमल भाव की कविताओं के लिए जाने जाते हैं।
डॉ. शैलजा सक्सेना ने पुस्तक की चर्चा करते हुए कहा कि इन कविताओं में व्यक्त आक्रोश केवल उत्तरांचल का आक्रोश नहीं अपितु उस काल के हर युवा का आक्रोश है। राजनैतिक व्यवस्था, भ्रष्टाचार और लालफीताशाही से कुंठित समाज का आक्रोश है। उन्होंने पाराशर जी को धन्यवाद दिया कि हिन्दी कविता में आंचलिक शब्दों के प्रयोग से उन्होंने हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया है।
अगले चरण में जसबीर कालरवि ने अपनी लोकार्पित पुस्तक “रबाब” में से दो रचनाएँ सुनाईं और दो नई कविताएँ सुनाईं। कैनेडा के हिन्दी साहित्य जगत में जसबीर कालरवि का नाम नया है। उनकी कविताओं में एक नई ताज़गी है और क्योंकि वह मूलतः पंजाबी के कवि हैं; तो उनकी कविता में पंजाबी का रंग आ जाना स्वाभाविक ही है और इससे उनका लेखन हिन्दी साहित्य के जानकारों को सुखद विस्मय की अनुभूति देता है।
पुस्तक में ग़ज़लें भी हैं इसलिए विजय विक्रान्त ने उर्दू में पुस्तक के बारे बोलते हुए कुछ ग़ज़लों के भावों के नज़ाकत की चर्चा की। भुवनेश्वरी पांडे ने कहा कि पुस्तक को एक बार पढ़ना शुरू करने के बाद वे उसे पूरा पढ़े बिना नहीं छोड़ पाईं। उन्होंने विशेष रूप से जसबीर की कोमल भाव वाली कविताओं की चर्चा करते हुए एक लम्बी कविता की बात करते हुए टिप्पणी की कि शायद जसबीर इसमें अपनी ही बात कर रहे हैं।
सुमन कुमार घई ने विस्तार से काव्य संकलन की बात करते हुए जसबीर की कविता के कई पक्षों के उदाहरण दिए। डॉ. शैलजा सक्सेना ने कहा कि कवि ने बहुत गहराई से जीवन का हर स्वर सुना है और उसका विश्लेषण किया है।
हिन्दी राइटर्स गिल्ड पुनः इन दो कवियों को बधाई देते हुए आशा करती है कि भविष्य में भी ऐसे कार्यक्रमों के आयोजन सम्भव हो पाएँगे।
२१ फरवरी, २००९ – कार्यक्रम का अगला चरण कहानी कार्यशाला का था। भगवत शरण जी ने अपनी कविता “तुम्हारी छवि” का पाठ किया। पाराशर गौड़ ने अपनी कहानी अधूरे सपने की चर्चा करते हुए कहा कि कहानी आकाश से नहीं उतरती अपितु अपने आस-पास घट रहा है वही कहानी है। भुवनेश्वरी पांडे ने अपने बचपन में पढ़ी हुई कहानियों को याद किया। राकेश तिवारी जो कि हिन्दी टाइम्स साप्ताहिक समाचार पत्र के प्रकाशक व संपादक हैं ने कहा कहानी वस्तुतः स्थिति का बयान है। उन्होंने हाल में ही हुई घटना जिसमें मिसीसागा में तिरंगे का अपमान हुआ उसकी चर्चा करते हुए कहा कि कहानी तो उस दिन भी घटी है। आचार्य संदीप त्यागी ने कहा साहित्य शास्त्रियों का कहना है कि कविता की कसौटी गद्य होता है। कहानी में कहानी के उद्देश्य की पूर्ति होना आवश्यक है। उन्होंने प्रेमचंद और जयशंकर प्रसाद की कहानियों को अपनी प्रिय कहानियाँ बताया। उन्होंने उदाहरण स्वरूप अपनी कविता “जवां भिखारिन” का पाठ करते हुए कविता के मूल में कहानी का होना प्रमाणित किया। डॉ. शैलजा सक्सेना ने कहानी की चर्चा करते हुए निर्मल सिद्धू की कहानी “अस्थि कलश” की विस्तार से समीक्षा की। राज महेश्वरी ने कहा “कहानी वही अच्छी होती है जो अच्छी लगती है।“ उन्होंने यह भी कहा कि प्रत्येक मानव कहानी लिख सकता है और उन्होंने हँसते हुए बताया कि उनकी नातिन की कहानी सारा-सारा दिन ख़त्म ही नहीं होती। आशा बर्मन कहा कि कहानियों से हमारा परिचय तो बचपन से ही आरम्भ हो जाता है। उन्होंने प्रेमचंद की कहानियों में पात्र के अनुसार भाषा की विविधता की प्रशंसा की। उन्होंने आगे बचपन का संस्मरण सुनाते हुए बताया कि कैसे उनके दादा जी को भी प्रेमचंद की कहानियाँ सुनना बहुत अच्छा लगता था। कहानी लिखने के विषय में बोलते हुए उन्होंने बताया कि बचपन में जब घर-मोहल्ले के बच्चे जब उनके पिता जी को घेर कर कहानी सुनाने का आग्रह करते थे तो पिता जी कहानी शुरू तो करते थे पर उस कहानी के हर चरण को बच्चों द्वारा ही आगे बढ़वाते हुए एक सार्थक अंत करते थे। उन्होंने यह भी कहा कि हमें अपने जीवन के अनुभवों के विषय में ही लिखना चाहिए। निर्मल सिद्धू ने अपनी कहानी की समीक्षा के लिए डॉ. शैलजा सक्सेना को धन्यवाद दिया और उन्होंने कहा कि कहानी केवल किसी समस्या की चर्चा ही नहीं करे बल्कि उसका समाधान भी सुझाए। उन्होंने अपने विद्यार्थी काल में पढ़े चंद्रधर शर्मा गुलेरी को अपना प्रिय लेखक बताया। सरन घई ने अपनी नई पत्रिका के प्रकाशन की घोषणा की और एक लघुकथा सुनाते हुए कहा कि इस कहानी में पात्रों का परिचय देने की आवश्यकता नहीं बल्कि हर पात्र का परिचय स्वतः होता चला जाता है। कार्यशाला का अन्त सुमन कुमार घई ने किया।

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