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जल है तो कल है - हिन्दी राइटर्स गिल्ड की मई मासिक गोष्ठी

मई 11, 2019 को ब्रैम्पटन लाइब्रेरी की स्प्रिंगडेल शाखा में हिन्दी राइटर्स गिल्ड की मासिक गोष्ठी का आयोजन सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। यह गोष्ठी विशेष थी क्योंकि पहले सत्र की विशेष अतिथि वक्ता डॉ. रोमिला वर्मा थीं जो यूनिवर्सिटी ऑफ़ टोरोंटो में प्राध्यापक एवं वैज्ञानिक (हाइड्रॉलोजिस्ट) हैं। वे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ताज़े पानी के गिरते स्तर और अभाव के प्रति लोगों में जागरूकता लाने के लिए अनेक स्तरों पर प्रयत्नशील हैं।
कार्यक्रम का आरम्भ डॉ. शैलजा सक्सेना ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि माँ समान प्रकृति का देय अतुलनीय है और प्राकृतिक सम्पदा के दुरुपयोग के प्रति हमें सचेत रहना चाहिए। उन्होंने अगले दिन आने वाले मदर्स डे की अग्रिम बधाई भी सभी माताओं को दी। डॉ. शैलजा सक्सेना ने डॉ. रोमिला वर्मा का परिचय देते हुए उन्हें आमंत्रित किया कि वे विशेष प्रस्तुति उपस्थित जनों के समक्ष दें।
अपनी प्रस्तुति को आरम्भ करने से पहले रोमिला जी ने कैनेडावासियों को विशेषत: कैनेडा के मूलनिवासियों को धन्यवाद दिया कि आज हम उन्हीं के कारण यहाँ खड़े हैं। उन्होंने अपनी गत दिनों में की भारत यात्रा के अनुभवों को साँझा करते हुए जहाँ एक ओर चौंकाने वाले वैज्ञानिक आंकड़े बताये कि किस तरह से ताज़े जल के अभाव के दुष्परिणाम दिखने आरम्भ हो चुके हैं, दूसरी ओर राजस्थान के एक छोटे से गाँव की भी बात की, जहाँ सारी पंचायत महिलाओं की है और जिनके प्रशासन में किस तरह से छोटा सा गाँव पर्यावरण के प्रति दायित्वपूर्ण व्यवहार का उदाहरण बन रहा है।
डॉ. रोमिला की प्रस्तुति ऑडियो-वीडियो के माध्यम से बहुत प्रभावशाली रही। उन्होंने दिनकर जी कविता "जीवन की गति" को उद्धृत करते हुए कहा कि "जल चक्र सत्य है"। उन्होंने बताया कि विश्‍व में केवल एक प्रतिशत पेय जल है। विश्‍व के समक्ष छह मुख्य चुनौतियों को बताते हुए उन्होंने गंगा के प्रदूषित हो जाने की समस्या की चर्चा की। डॉ. रोमिला वर्मा ने अपनी प्रस्तुति के अन्त में अपनी लघुकथा "गंगा का पुनर्जन्म" श्रव्य दृश्य माध्यम से प्रस्तुत की।
डॉ. शैलजा सक्सेना ने डॉ. रोमिला वर्मा का धन्यवाद करते हुए कहा कि लेखक विश्‍व की समस्याओं से जुड़ा होता है अत: अपने लेखन में उसे इन समस्याओं के समाधान के विकल्प और विचार भी प्रस्तुत करने की चेष्टा करनी चाहिए क्योंकि साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं उसे सही दिशा में प्रेरित करने वाला भी होता है।
जलपान के लिए एक छोटे अंतराल के बाद गोष्ठी का दूसरा सत्र आरम्भ हुआ जिसमें स्वरचित रचनाएं सुनाई गईं। इस सत्र के पहले कवि थे श्री अखिल भंडारी। उन्होंने पानी के विषय पर ही अपनी ग़ज़ल प्रस्तुत की - 'किस किस को ले डूबा पानी/पानी आख़िर निकला पानी'। अगले कवि डॉ. नरेन्द्र ग्रोवर थे, अपनी कविता में उन्होंने जीवन की अच्छी - बुरी सभी परिस्थितियों के लिए व्यक्ति को स्वयं ज़िम्मेदार ठहराते हुए पढ़ा, 'मेरे जीवन में हर निर्णय मेरा था'। श्रीमती प्रमिला भार्गव ने इंटरनेट से प्राप्त किसी अनजान कवि की कविता सुनाई, पंक्तियाँ थीं - मैं पानी हूँ आपकी आँखों का पानी। अगले कवि श्री बाल कृष्ण शर्मा थे उन्होंने जल के महत्व को दर्शाते आलेख का पाठ किया। श्री सतीश सेठी की कविता "झील कुछ कह रही है" थी। श्रीमती आशा मिश्रा जो अभी तक केवल श्रोता रही हैं, ने अपनी पहली कविता में पानी के विभिन्‍न रूपों का वर्णन करते हुए कहा "जीवन का आधार हूँ पर हूँ पानी"। श्रीमती पूनम चन्द्रा मनु की कविता विशेषरूप से भावपूर्ण रही। उनके प्रतीक और उनकी अभिव्यक्ति सदा की तरह अनूठी थी "बारिश को बाँध कर रोशनाई की जगह/ भर लिया था मैंने दवात में/ बस उसीसे लिखा..."। श्रीमती आशा बर्मन ने अपनी हास्य कविता "सावन" में भारत के सावन के महीने और कैनेडा की वर्षा ऋतु के समकक्ष रखते हुए प्रभु से पूछा "सावन तो प्रभु अब आया/ उससे पहले ही इतना पानी क्यों बरसाया"। श्री रामेश्वर काम्बोज ’हिमांशु’ जी की कविता थी "मैं पानी हूँ मैं जीवन हूँ"। सुमन कुमार घई ने पर्यावरण के प्रभाव को दर्शाती कविता "इस बरस वह पेड़ टूट गया" सुनाई। श्री विजय विक्रान्त जी ने अपनी हास्य आलेख शृंखला की डायरी का अगला पन्ना "रिमोट की कहानी" सुनाई। श्रीमती कृष्णा वर्मा ने अपनी कोई रचना सुनाने की बजाय श्री रामेश्वर काम्बोज ’हिमांशु’ जी की बाल कहानी पुस्तक "हरियाली और पानी" की कहानी का पाठ किया। अन्तिम कवयित्री कार्यक्रम की संचालिका स्वयं डॉ. शैलजा सक्सेना थीं जिनकी कविता थी "कविता क्या दे सकती है"। पर्यावरण और विशेषत: पानी पर आधारित इस विशेष गोष्ठी के माध्यम से हिंदी राइटर्स गिल्ड ने अपने तरीके से इस सन्दर्भ में जागरूकता लाने के प्रयासों में अपनी यह एक चेष्टा जोड़ी।
जलपान का प्रबन्ध श्रीमती इंद्रा वर्मा और डॉ. रोमिला वर्मा ने किया था, संस्था ने उनका धन्यवाद किया।

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