अम्बर बाँचे पाँती
हिन्दी राइटर्स गिल्ड का नया साल श्रीमती कृष्णा वर्मा जी के पहले हाइकू संग्रह "अम्बर बाँचे पाँती" के विमोचन और चर्चा से प्रारंभ हुआ । यह कार्यक्रम जनवरी 10 को ब्रैम्पटन लायब्रेरी, ओंटोरियो के हॉल में आयोजित किया गया। जनवरी 10, 2015 विश्व हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है । जापान से आयी हाइकू विधा को हिन्दी की मधुरता से ओत-प्रोत कर कृष्णा वर्मा जी ने जब अपने हाइकू पढ़े तो हिन्दी की वैश्विकता यथार्थ बन कर मंच पर उतर आई। कृष्णा जी का हाइकू संकलन हिन्दी राइटर्स गिल्ड से टोरोंटो, कैनेडा में प्रकाशित हुआ है और ‘अयन प्रकाशन’ द्वारा भारत में भी प्रकाशित किया गया है। जहाँ तक हमारी जानकारी है यह कैनेडा से प्रकाशित पहला हाइकू संकलन है। कार्यक्रम का प्रारंभ मानोशी चटर्जी द्वारा माँ सरस्वती की वंदना के श्लोक द्वारा हुआ। इसके बाद कृष्णा जी के हाइकू संकलन के लोकार्पण के साथ ही " सरस्वती- सुमन" के हाइकू विशेषांक का लोकार्पण हुआ। यह विशेषांक श्री रामेश्वर कांबोज" हिमांशु" ने बहुत स्नेह और मेहनत से तैयार किया है और हाइकू के नये-पुराने कवियों के साथ अंतर्राष्ट्रीय हाइकूकारों को भी सम्मिलित किया है। कैनेडा के पाँच हाइकूकार इसमें सम्मिलित किये गये हैं: निर्मल सिद्दू, मानोशी चटर्जी, कृष्णा वर्मा, डॉ. शैलजा सक्सेना और सविता अग्रवाल । इस विशेषांक में हाइकू के विविध आयामों का विश्लेषण करने वाले १२ लेख भी हैं। गिल्ड के सभी सदस्यों ने उत्साह से इस विशेषांक का स्वागत किया। यहाँ यह बताना सामयिक होगा कि हिन्दी राइटर्स गिल्ड टोरोंटॊ की दानार्थी संस्था है जो लेखकों और हिन्दी प्रेमियों को साहित्य की समस्त विधाओं में लिखने और चर्चा करने के लिये मंच देती है और उनको पुस्तक प्रकाशन की सुविधायें भी प्रदान करती है । यह संस्था २००८ से सक्रिय है और कृष्णा वर्मा जी की पुस्तक गिल्ड से प्रकाशित ११ वीं पुस्तक है। कार्यक्रम की संचालिका डॉ. शैलजा सक्सेना ने सबका स्वागत करते हुये हाइकू की व्याख्या में कहा, “ हाइकु क्या है? ओक भर जल सा: प्यासे का पानी" उन्होंने कृष्णा जी को बधाई दी जिन्होंने इतने सार्थक और सक्षम हाइकु लिखे हैं और कहा कि ६८३ हाइकु के इस संकलन में मौसम और जीवन के अनेक रंग बिखरे हुये हैं। उन्होंने सर्वप्रथम कृष्णा जी को हाइकु पाठ के लिये आमंत्रित किया। कृष्णा जी ने अपने वक्तव्य में रामेश्वर दयाल कांबोज "हिमांशु" जी को अनेक धन्यवाद दिये जिन्होंने उन्हें हाइकु लिखने की प्रेरणा दी और निरंतर प्रोत्साहन देकर उनके हाइकु के स्तर-सुधार में मदद की। हिमांशु जी ने २०११ में गिल्ड की एक कार्यशाला में हाइकु, चोका और सेदोका लेखन को विस्तार से समझाया था और सबको इन विधाओं में लिखने की प्रेरणा भी दी थी। कृष्णा जी ने गिल्ड के निर्देशक डॉ. शैलजा सक्सेना और सुमन घई को भी धन्यवाद दिया जिन्होंने उन्हें हाइकु संकलन छापने के लिये प्रोत्साहित किया और मदद की। कृष्णा जी ने अपने पुस्तक से कुछ हाइकु सुनाये, जो श्रोताओं को बहुत पसन्द आये और बार-बार उनसे हाइकु दोहराने का आग्रह किया गया। इस के बाद पुस्तक चर्चा प्रारंभ हुई। टोरोंटो की वरिष्ठ लेखिका डॉ. इंदु रायज़ादा ने पुस्तक पर बोलते हुये कहा कि हाइकु सूक्ति के रूप में मन पर प्रभाव छोड़ते हैं और कृष्णा जी के लगभग सभी हाइकु प्रभावकारी हैं, उन्होंने भी अनेक हाइकु संकलन से पढ़ कर सुनाये । भुवनेश्वरी पांडे ने अपने वक्तव्य में कहा कि हाइकु हमें बताते हैं कि बहुत कम शब्दों में भी बात कही जा सकती है और कृष्णा जी ने यह काम सफलतापूर्वक किया है । सविता अग्रवाल जी ने कहा कि पहले-पहल ऐसा लगता है कि ३ पंक्तियों और इतने कम वर्णों में अपनी बात कैसे कही जा सकती है कितु धीरे-धीरे समझ में आता है कि बात वास्तव में उतनी ही कहने लायक होती है। उन्होंने कृष्णा जी के तीन भागों पर अपने वक्तव्य को केंद्रित किया और कहा कि कृष्णा जी के माँ-बेटी या पारिवारिक संबंधों से जुड़े हाइकु बहुत प्रभावशाली हैं। कृष्णा जी की शब्दावली और प्रकृति चित्रण की उन्होंने प्रशंसा की और अनेक हाइकू का उल्लेख किया, जिस हाइकु ने उन्हें सबसे अधिक प्रभावित किया था, वह था: “ भिनसार में / टूटी स्वप्न की साँसें / पलकें खुलीं !!” संजीव अग्रवाल जी ने ५-६ हाइकु लिख कर हाइकू और कृष्णा जी के बारे में अपने विचार रखॆ , संजीव जी लेखक नहीं हैं पर कृष्णा जी के संकलन ने उन्हें प्रभावित किया। मानोशी चटर्जी, जो स्वयं भी हाइकुकार हैं, उन्होंने जगदीश व्योम जी की हाइकु परिभाषा से अपने वकत्व्य का प्रारंभ करते हुये कहा कि " हाइकु चरम क्षण की अनुभूति होती है और एक पूरा बिंब उपस्थित करती है" । उन्होंने कृष्णा जी के अनेक हाइकु उदृधत करते हुये कहा कि कृष्णा जी के सभी हाइकू एक स्थिति का पूरा चित्र उपस्थित करते हैं जैसे: धूप चटोरी / पत्तों का रंग चाट / चढ़ी आकाश !! शैलजा सक्सेना ने भी कृष्णा जी के लेखन में नये उपमान और सुन्दर बिंबों के प्रयोग की सराहना की और प्रकृति के अनूठे दृश्यों की चर्चा करते हुये कहा: “ कृष्णा की बात/ अम्बर बदमाश / बाँचे सभी को !! गिल्ड के एक अन्य सदस्य श्री पंकज शर्मा जी ने भी ५०० से अधिक वर्ष पुरानी हाइकु विधा के इतिहास और विशेषताओं का उल्लेख करते हुये कहा कि कृष्णा जी के बिंब, कल्पना की उड़ान और यथार्थ का चित्रण सभी अद्भुत है । विद्यभूषण धर ने कहा कि पतझर पर लिखॆ उनके अनेक हाइकु केवल प्रकृति के चित्र ही नहीं प्रस्तुत करते अपितु प्रकृति के माध्यम से विस्थापितों की पीड़ा को भी बताते हैं। काश्मीरवासियों के विस्थापन के दर्द को याद करते हुये उन्होंने कहा कि कृष्णा जी के कई हाइकु उन्हें अपने जीवन के दर्द से जोड़ते हैं जैसे: "कैसा भूकंप / क्रूर पतझड़ ने / तोड़े कुटुम्ब !!” या "पत्तों की फौज/ ढूँढती नया ठौर/ जत्थों में भागे" । लता पांडे ने कहा कि कृष्णा जी के हाइकु जीवन और प्रकृति के सुन्दर समन्वय का समीकरण प्रस्तुत करते हैं। यह लेखक की सफलता होती है कि पाठक उस लेखन से जुड़ पाता है और स्वयं को उस लेखन में देख पाता है। कृष्णा जी को इस सफलता के लिये श्री पाराशर गौड़, निर्मल सिद्दू और अन्य लोगों ने बहुत बधाई दी और आशा की कि कृष्णा जी की कलम निरंतर चलती रहेगी और हमें उनकी अन्य प्रकाशित रचनायें शीघ्र ही देखने को मिलेंगी। कार्यक्रम कृष्णा जी द्वारा आयोजित सुस्वादु जलपान से समाप्त हुआ। यह पहला अवसर था कि गिल्ड में हाइकु पढ़े और सुने गये थे । कृष्णा वर्मा की "अम्बर बाँचे पाँती" ने गिल्ड के सदस्यों और अनेक श्रोताओं को हाइकु के सौन्दर्य से परिचित ही नहीं कराया अपितु उन्हें हाइकु लिखने की प्रेरणा भी दी। कार्यक्रम सकारात्मक वातावरण में संपन्न हुआ।