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कही-अनकही

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आशा बर्मन की पुस्तक ‘कही-अनकही’ का विमोचन एवं चर्चा

श्रीमती आशा बर्मन की पुस्तक ‘कही-अनकही’ का प्रकाशन उत्सव, विमोचन एवं चर्चा 12 अगस्त 2012 को हिंदी राइटर्स गिल्ड द्वारा मनाया गया। वहां अच्छी संख्या में श्रोता उपस्थित थे तथा पुस्तक के सम्बन्ध में जानने को उत्सुक भी। यह पुस्तक हिंदी राइटर्स गिल्ड की ओर से प्रकाशित की गयी है। पुस्तक का कलेवर सुन्दर तथा आकर्षक है। कवर की दूसरी ओर लेखिका का चित्र तथा परिचय भी छपा है । इस पुस्तक में लेखिका की ६७ कविताएं हैं ।
‘कही-अनकही’के सम्बन्ध में यह उल्लेखनीय है कि इस पुस्तक का समर्पण किसी व्यक्ति विशेष को नहीं वरन मन के निकट सभी अपनों को किया गया है-
मन के निकट सभी अपनों को, जिनसे पाया प्यारा अपार,
आज समर्पित ‘कही-अनकही’ कविताओं का यह उपहार ।
उत्सव के आरम्भ में डॉ. शैलजा सक्सेना ने पुस्तक का परिचय दिया। उनके अनुसार इस संग्रह में स्वानुभूत सत्य से प्रेरित कवितायें हैं। कथ्य के स्तर पर और भाषा के स्तर पर बनावटी इनमें लाग-लपेट नहीं है। मन में जैसी अनुभूति उठी, विचारों ने उस को वैसे ही अपने में समेटा है और भाषा ने उसी तरह उन विचारानुभूतियों को प्रस्तुत कर दिया है। यहाँ चमत्कार दिखाने की चेष्टा की नहीं की गई है। हर कविता सहज है, प्रवाहपूर्ण है और पाठक से बतियाती है। आशाजी कहती भी हैं कि उनकी कवितायें स्वान्तःसुखाय हैं पर साथ ही ये कवितायें शेष सबको भी अपनी भावधारा में सम्मिलित करती हुई चलती हैं। इनकी कवितायें, गीतों का उद्देँय अपनी ऐसी निजी अनुभूतियों को प्रस्तुत करना है जो शेष सबसे भी तादात्म्य स्थापित कर सके।
यहाँ के स्थानीय सुप्रसिद्ध कवि श्री डॉ. श्री शिवनंदन सिंह यादव ने आशा जी की कविताओं के विषय में अपने विचार व्यक्त किये। उन्होंने मर्मस्पर्शी भावों को शब्दों में व्यक्त करने की लेखिका की क्षमता की सराहना की| उन्होंने यह भी कहा कि हिंदी भाषा पर पूर्ण अधिकार होते हुए भी कवयित्री ने अनेक कविताओं में अत्यंत सरल भाषा का प्रयोग किया है तथा छोटे छोटे शब्दों का जैसे ‘भी’ अथवा ‘ही’ का समीचीन प्रयोग किया है ।
श्रीमती अचला दीप्ति कुमार ने आशाजी की कविताओं की सराहना करते हुए सरल शब्दों में पूरा बिम्ब प्रस्तुत करने की क्षमता की प्रशंसा करते हुये उनकी कुछ कविताओं पर श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान के कवित्व की छाया की चर्चा की। विषयों की विविधता तथा भाव-सौष्ठव की दृष्टि से पुस्तक सराहनीय है। इन कविताओं की भाषा भावानुरूप है जैसे- लोकगीतों और भजन की भाषा में बोली का प्रयोग किया गया है और “फुर्सत” जैसे विषयों की भाषा आम बोलचाल की भाषा है, मन के भावों का वर्णन करते समय यह भाषा कोमल और मधुर हो जाती है और जीवन चिंतन करते समय गंभीर।
श्री राज महेश्वरी जी ने आशाजी के कविताओं के सम्बन्ध में कहा कि वे मर्मस्पर्शी हैं तथा उनमें वात्सल्य भाव का सुन्दर चित्रण है, जैसे ‘बाबूजी’ नामक कविता में।
हिंदी राइटर्स गिल्ड के जिन अन्य सदस्यों ने ‘कही-अनकही’ के सम्बन्ध में व्यक्तव्य दिया, उनमें थे श्री विजय विक्रांत, श्रीमती अरुणा भटनागर, श्रीमती कृष्णा वर्मा. श्रीमती भुवनेश्वरी पांडे तथा श्रीमती सविता अग्रवाल ।
उत्सव की समाप्ति पर आशाजी ने अपनी पुस्तक सभी अभ्यागतों को लिखित शुभकामनाओं सहित भेंट की। इसके पश्चात् अल्पाहार का आयोजन श्री अरुण बर्मन की ओर से किया गया था जिसका सबने चाय की चुस्कियों के साथ रसास्वादन किया।
आजकल की कविताओं में प्राय: सहजता की कमी दिखाई देती है पर इस ‘कही-अनकही’ के भावों की सहजता और भाषा की मधुरता पाठकों को प्रिय लगेगी, ऐसी आशा है। इस संग्रह के प्रकाशन पर आशा जी को बहुत-बहुत बधाई!

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