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शरद्‌ काव्योत्सव
2019

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शरद्‌ काव्योत्सव मासिक गोष्ठी - अक्तूबर 2019

19 अक्तूबर 2019—हिन्दी राइटर्स गिल्ड की मासिक गोष्ठी ब्रैम्पटन लाइब्रेरी के सभागार में संपन्न हुई। पतझड़ के मोहक रंगों से सजे वृक्ष, डालों का हाथ थामे आख़िरी साँसें लेते पल्लव, कुछ हवाओं में गुलाबी खुनकियाँ प्रकृति की अनूठी छटा बिखेरती शार्दिक ऋतु में आज की गोष्ठी को काव्य उत्सव के रूप में मनाया गया। इस गोष्ठी के संचालक श्री संदीप कुमार ने अतिथियों का स्वागत किया। साथ ही इस ख़ूबसूरत मौसम और चंद दिनों में ही आने वाली शीत ऋतु के शर सहने को स्वीकारते हुए कार्यक्रम को आरम्भ किया। गोष्ठी के मध्य में सभी ने जलपान का आनंद उठाया। तथा अंत तक श्री संदीप कुमार ने बहुत ही काव्यमय ढंग से संचालन का निर्वहन किया।
काव्योत्सव में इन सभी कवियों और कवियित्रियों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। सबसे पहली कवियित्री थीं श्रीमती इंदिरा वर्मा जिन्होंने एक ख़ूबसूरत भजन ’श्याम सुंदर तेरी आरती गाऊँ, श्रद्दा सुमन मैं तुम्हें चढ़ाऊँ’ से सबका मन मोह लिया। श्री सतीश सेठी ने आज के बदलते हालातों, बदलते रिश्तों के दर्द का सटीक चित्रण करते हुए अपनी रचना ’मेरा शहर बहुत बदल गया’ का पाठ किया। श्रीमती भुवनेश्वरी पांडे ने माँ बेटी के प्यारे नाते पर लिखी ’वो मेरे मन की सुमन, वर्षों पहले बोया बीज’ ख़ूबसूरत रचना साँझा की। अगले कवि श्री निर्मल सिद्धू ने यादों पर आधारित कुछ हाइकु कहे और एक ग़ज़ल प्रस्तुत की ’उजालों के लिए मिट्टी के फिर दिये तलाशें’। श्रीमती इंदु रायज़ादा ने राबर्ट ब्राउनिंग की इश्क़ से संबंधित अंग्रेज़ी कविता का हिन्दी अनुवाद सुनाया। श्री राज महेश्वरी ने मोदी सरकार की उपलब्धियों का ब्योरा देते हुए अपनी एक रचना सुनाई ’अच्छे दिन आए’। डॉ. जगमोहन सांगा की शरद ऋतु पर लिखी बहुत सुंदर कविता थी ’शरद ऋतु में भी कोसा बोलने की कोशिश तो कर के देख, बोलने से पहले तोलने की कोशिश तो कर के देख’। सदैव की भाँति अपनी उम्दा दो ग़ज़लों से श्री अखिल भंडारी ने आज फिर श्रोताओं का मन मोह लिया। ’शाख़-ओ-शजर की तन्हाई क्या गुलशन का वीराना क्या, ये पंछी तो आवारा हैं इनका ठौर ठिकाना क्या’। और दूसरी ग़ज़ल थी ’उसका चेहरा बुझा-बुझा सा है’। श्री बाल कृष्ण शर्मा ने ’चहुँ ओर मेरे ईश्वर की माया है’ अपने भजन का गायन किया। अगली कवियित्री श्रीमती प्रमिला भार्गव ने अक्तूबर माह के पर्वों पर आधारित ’उत्सवों का महीना है’ रचना पाठ किया। श्रीमती प्रीति अग्रवाल की ’चलो आज ख़ुद से मुलाक़ात कर लें’ तथा ’धक्का मुक्की देख असमंजस में खड़े थे’ रोचक कविताओं ने सबको मुग्ध किया। बदलते मौसम का बहुत सुंदर वर्णन करती श्रीमती सविता अग्रवाल की कविता थी ’गरमी का मौसम जाते ही, वसुधा में भी थी हरियाली’। तत्पश्चात श्रीमती कनिका वर्मा ने अपनी रचना ’मुझे इश्क़ है’ द्वारा इश्क़ के विभिन्‍न रूपों का विवरण देते हुए दिल के कई राज़ तथा शब्दों के मौन की सुंदर व्याख्या की। शारदीय ऋतु का ख़ूबसूरत चित्रण ’हरियाली बन्नो’ सुंदर शब्द चयन पतझड़ का मानवीयकरण करती डॉ. शैलजा सक्सेना की रचना ’प्रकृति के आँगन में फैली है उदासी, विदा होने को है मौसम की पालकी में बिटिया’ ने सभी श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। श्री संदीप त्यागी के कुछ दोहों और ’इश्क़ को न उम्र में जकड़िएगा जी’ रचना ने सुंदर समा बाँधा। डॉ. नरेन्द्र ग्रोवर ने अपना कविता पाठ शरद ऋतु से संबंधित एक हाइकु से आरम्भ किया और अपनी मुख्य कविता से सबका मन मोह लिया। श्री सुमन घई ने साहित्य कुंज में प्रकाशित १६ वर्षीय क्षितिज जैन की कविता सुनाई -शीर्षक था ’नवयुग का गीत’। कविता की पहली पंक्तियाँ थीं - जो पीत हुए पत्र रोक रहे हरित नवकोंपलों को/उन्हें आज वृक्ष शाखाओं से टूट कर गिरने दो। इसमें किशोर कवि ने पुरानी पीढ़ी से आग्रह किया था कि नई पीढ़ी के आगे बढ़ने के लिए पुरानी पीढ़ी को रास्ता छोड़ देना चाहिए। फुरसत के चंद पल मिले नहीं कि मन भटकने लगता है बीती को। और आकलन में उलझा मन करता रहता है आँखें नम। श्रीमती कृष्णा वर्मा ने इस बात को दर्शाती ’स्मृतियों के घेरे में’ एक रचना तथा कुछ विभिन्‍न विषयों पर हाइकु का पाठ किया। श्रीमती पूनम चंद्रा ने दीप के बलिदान पर आधारित ’वो दिया जो जल कर रौशन करता है’ सुंदर रचना सुनाई। तथा साथ ही आज के कार्यक्रम के संचालक श्री संदीप कुमार को रचना पाठ के लिए आमंत्रित किया। श्री संदीप कुमार ने ’मेरा एक ख़्वाब और तेरी यादें अक्सर बातें करती हैं’ अपनी ख़ूबसूरत रचना सुनाई। गोष्ठी के अंत में श्री इक़बाल बरार ने हमेशा की तरह अपनी मधुर आवाज़ में आज एक पंजाबी लोकगीत ’मिट्टी दा बावा बनानीआँ’ पेश कर सभी का मन मोह लिया। और आज की यादगार गोष्ठी को विराम दिया।
श्रीमती कृष्णा वर्मा

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