अनुवाद से संवाद तक
हिन्दी राइटर्स गिल्ड का एक अनोखा कार्यक्रम आज प्रस्तुत किया गया। जिसका विषय था, ‘अनुवाद से संवाद तक’ अनोखा इसलिए कि इस कार्यक्रम में दो ऐसे लेखकों/विद्वानों को सुनने का अवसर मिला जिनका बहुत बड़ा काम अनुवाद के क्षेत्र में रहा है| वे दोनों हैं, डॉ. फ़िलिप लट्टगैनडॉल्फ़ जो आयोवा विश्वविद्यालय (Iowa University) में Hindu & Modern Studies विभाग में हैं तथा डॉ. रेखा सेठी जो इन्द्र प्रस्थ कालेज देहली विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं। कार्यक्रम का आरंभ संदीप कुमार ने सब अतिथियों के स्वागत व अभिनंदन से किया तथा मुख्य संचालक समीर लाल जी का परिचय करवाया। उन्होंने बताया कि समीर लाल जी व्यवसाय से तो Chartered Accountant हैं परन्तु उनकी पहुँच हिन्दी साहित्य में भी दूर-दूर तक है। आप कविता, कहानी, ग़ज़ल आदि लिखते हैं तथा एक व्यंग्यकार के रूप में भी जाने जाते हैं। इनकी कई किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं, इनका ब्लॉग “उड़न तश्तरी” के नाम से जाना जाता है तथा आप अनेक सम्मान प्राप्त कर चुके हैं, जिनमें ’परिकल्पना सम्मान’ एक है। खाना बनाने में भी रुचि रखते हैं समीर लाल जी! डॉ. फ़िलिप का परिचय देते हुये समीर लाल जी ने कहा कि अनुवाद, अलग-अलग भाषाओं के लिये, एक सेतु का काम करता है, जो कि डॉक्टर फ़िलिप ने राम चरित मानस के अनुवाद द्वारा किया है। उनकी Life of a Text पुस्तक के लिये डॉ. फ़िलिप को तुलसी पुरस्कार भी दिया गया है। डॉ. फ़िलिप ने अपना वक्तव्य यह बता कर आरंभ किया कि वे भी खाना बनाने में रुचि रखते हैं और यह भी कि वे अँग्रेज़ी में बोलेंगे। अँग्रेज़ी में बोलते हुये उन्होंने कहा कि राम कथा (मानस) एक महान सरोवर के समान है तथा एक नहीं अपितु कई किताबों का विषय है। विद्यार्थी जीवन के प्रारंभ से उनका रुझान हिन्दी की ओर रहा। बाद में वे कई वर्ष भारत में रहे व रामायण तथा रामायण के ज्ञाता व गुरुओं के साथ समय बिताया chanting भी सीखी। राम चरित मानस का अनुवाद खड़ी बोली बोलने वालों के लिये आवश्यक है, ऐसा उनका विचार है, क्योंकि तुलसी की मानस अवधी भाषा में है। १९८७ से लेकर अब तक राम चरित मानस के १० अनुवाद हो चुके हैं। प्रश्न उठता है कि एक और अनुवाद क्या आवश्यक था? १० में से ७ अनुवाद गद्य में हैं, इसलिये जब उनसे अनुवाद करने को कहा गया तब फ़िलिप पद्य में अनुवाद करने को तैयार हो गये। उन्होंने उदाहरण देकर यह भी बताया कि तुलसी की मानस में छन्द, चौपाई आदि अधिकतर गेय हैं व मानस संगीतमय है और इस बात को अनुवाद में दिखाना उनके लिये बहुत बड़ी चुनौती रही। हिन्दी भाषा जैसी विविधता अँग्रेज़ी में नहीं है, हिन्दी में एक ही शब्द को स्थान तथा दशा के अनुसार दर्शाया जा सकता है जो कि अँग्रेज़ी में संभव नहीं है, यह कठिनाई भी अनुवाद के समय आई, इसी प्रकार भाषा संबंधी चुनौतियाँ जो उनके सामने आयीं, उनके विषय में डॉ. फ़िलिप ने श्रोताओं को बताया। डॉ. फ़िलिप ने लंका कांड तक का अनुवाद कर लिया है। प्रत्येक कांड एक अलग ग्रंथ है। २०२३ तक राम चरित मानस का अंतिम कांड भी समाप्त हो जायेगा जो कि तुलसी दास जी की ४०० वीं पुण्य तिथि भी है। मानस के अनुवाद के समय डॉ. फ़िलिप के सामने अनेक प्रश्न थे कि पाठक आसानी से अर्थ समझ जायें जो कि कहीं व्याकरण, कहीं भाषा, कहीं अन्य संदर्भों के कारण समझाने कठिन थे। साथ ही मानस जैसे ग्रन्थ की भव्यता को बनाये रखना भी एक चुनौती रही। अन्त में डॉ. फ़िलिप ने “छमिहहि सज्जन मोरि ढिठाई …” मानस की प्रसिद्ध चौपाई से अपना वक्तव्य समाप्त किया। आज की दूसरी वक्ता डॉ. रेखा सेठी रहीं जो देहली विश्व विद्यालय में कार्यरत हैं तथा हिन्दी साहित्य की अनेक विधाओं, विशेष कर अनुवाद के क्षेत्र में विशेष तौर पर जानी जाती हैं। समीर लाल जी ने रेखा जी को आमंत्रित करते हुये बताया कि वे विशेष तौर पर स्त्री रचनाकारों पर केन्द्रित हैं तथा उनकी पुस्तकें परिप्रेक्ष्य, विज्ञापन.कॉम व अनेक अनूदित पुस्तकें हिन्दी जगत में सराही जा रही हैं! डॉ. रेखा सेठी ने अपनी बातचीत डॉ. फ़िलिप के काम की सराहना से आरंभ की और कहा कि दशहरे के अवसर पर राम चरित मानस की चर्चा में सब रम गये। रेखा जी ने बताया कि उन्होंने अनुवाद का काम २०१६ में Dream Catcher नाम की पुस्तक से किया था। तब से वे अनेक भाषाओं की कविताओं के अनुवाद कर चुकी हैं जैसे, अँग्रेज़ी, बंगला, उड़िया, तमिल आदि! उन्होंने अनुवाद की क्रिया को जुगल बंदी जैसा बताया जहाँ लेखक व अनुवादक का ताल मेल अच्छा हो। अनुवाद की प्रकिया को लेकर, रेखा जी ने कई चुनौतियों पर प्रकाश डाला। शब्दों का चयन, पाठ के क़रीब रहना, कविता की लय, गति को क़ायम रखना उनमें से कुछ हैं। अनुवाद करते समय कविता की मूल प्रकृति पर ध्यान देना आवश्यक है, साथ ही रचनाकार का सम्मान बना रहे, यह भी! रेखा जी ने अपनी कुछ कवितायें तथा अपने किये हुये अनुवाद सुनाये साथ ही उन में प्रयोग किये गये शब्द, भाव बड़ी सुन्दरता से समझाये। एक कविता Art of Wearing Bangles व उसका अनुवाद भी सुनाया। उन्होंने बताया कि कि आजकल की युवा पीढ़ी कि कविताओं में काफ़ी tension हैं और उनका अनुवाद करना भी एक चुनौती है। तिशानी दोषी नामक युवा कवि की कविता के बारे में भी उन्होंने चर्चा की। संचालक समीर लाल जी ने डॉ. रेखा सेठी जी तथा डॉ. फ़िलिप को साधुवाद व धन्यवाद देते हुये कहा कि सभी श्रोतागण आज मिली हुई इतनी गहरी जानकारी से प्रभावित हैं और धन्यवाद के पात्र भी हैं। कार्यक्रम का समापन हमारे विद्याभूषण धर जी ने धन्यवाद ज्ञापन से किया। डॉ. फ़िलिप के काम की सराहना करते हुये उन्हें बधाई दी तथा रेखा जी को इतनी भाषाओं में अनुवाद करने के लिये साधुवाद तथा बधाई दी। विद्या धर जी ने मुख्य संचालक समीर लाल जी को कुशल संचालन के लिये धन्यवाद दिया तथा उन सब संस्थाओं को भी जिनका सहयोग हिन्दी राइटर्स गिल्ड के मिलता रहा है। रिपोर्ट-इंदिरा वर्मा