जज़्बात
कैनेडा की लेखिका पूनम चंद्रा की हाल ही में भारत में हिन्दी युग्म द्वारा प्रकाशित काव्य संग्रह ‘जज़्बात’ पर हिन्दी राइटर्स गिल्ड की मासिक गोष्ठी में चर्चा की गयी। यह कार्यक्रम 9 दिसम्बर 2012 को को ब्रैम्पटन लाइब्रेरी के सभागार में दोपहर के बाद आयोजित किया गया। कार्यक्रम का आरम्भ अल्पाहार के बाद पारंपरिक सरस्वती वंदना से शुरू हुआ और इस कार्यक्रम की संचालिका डॉ. शैलजा सक्सेना ने उपस्थितजनों का स्वागत करते हुए मनु को बधाई दी और पुस्तक प्रकाशन के महत्व को दोहराया। उन्होंने मनु को अपनी पुस्तक में से कुछ पढ़ने और भारत में हुए लोकार्पण कार्यक्रम के बारे में बताने के लिए आमन्त्रित किया। मनु ने पुस्तक में से ‘जज़्बात’ का भावपूर्ण पाठ किया और हिन्दी युग्म द्वारा आयोजित कार्यक्रम की प्रशंसा की। मनु ने अपनी पुस्तक के विषय में बोलने के लिए चार वक्ताओं को आमन्त्रित किया था। डॉ. शैलजा सक्सेना ने मनु की इच्छानुसार सबसे पहले श्रीमती आशा बर्मन को आमंत्रित किया। आशा जी ने पुस्तक की चर्चा करते हुए कहा कि हालांकि उन्हें रचनाओं को कविता कहते हुए संकोच हो रहा है परन्तु अभिव्यक्ति और भाव में पूर्णता है। भाषा आम लोगों की भाषा है जो समझ आने वाली है। उन्होंने कुछ कविताओं की उदाहरण देते हुए कहा कि शायद यह कुछ लंबी हो सकती थीं। अगली वक्ता भुवनेश्वरी पाण्डे थीं। उन्होंने काव्य को प्रेम प्रधान कहा। उन्हें लगा कि लेखिका वास्तव में ही रस में डूब कर बात कर रही हैं। भाषा में उर्दू की प्रधानता को देखते हुए उनकी टिप्पणी थी कि यह देवनागरी में लिखी उर्दू की पुस्तक कही जानी चाहिए। इसके बाद हिन्दी टाइम्स के संपादक सुमन कुमार घई को अपने विचार प्रकट करने के लिए कहा गया। सुमन घई ने कहा कि प्रायः पुस्तक का नामकरण करते हुए लेखक या लेखिका दुविधा में रहते हैं कि क्या नामकरण क्या जाए, परन्तु पुस्तक की रचनाओं को देखते हुए, इस पुस्तक का नाम जज़्बात के सिवा कुछ और हो ही नहीं सकता क्योंकि रचनाएँ कच्चे, कोरे जज़्बात हैं जिनमें पाठक बह जाते हैं और यह दिल की गहराईयों तक उतर जाते हैं। आशा जी की टिप्पणी पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि बेशक कविताएँ छोटी हैं, परन्तु पूर्ण हैं – जब जज़्बात की अभिव्यक्ति हो गयी तो उसे खींचा नहीं गया। हालांकि कुछ रचनाएँ गद्य पद्य श्रेणी की कही जा सकती हैं परन्तु उनमें कविता के सभी गुण शामिल हैं। उदाहरण देते हुए उन्होंने कुछ रचानाएँ भी पढ़ीं। अंतिम वक्ता डॉ. शैलजा सक्सेना थीं। उन्होंने कहा कि कविता के सभी गुणों से संपन्न ये रचनाएँ अपने में अनूठी हैं और एक पहल हैं। कविता के नियमों का पालन न करते हुए भी कविता हैं। परन्तु उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि कुछ रचनाएँ केवल एक वक्तव्य, टिप्पणी, उक्ति या सूक्ति की तरह हैं कविता नहीं। उन्होंने मनु को बधाई देते हुए आशा व्यक्त की इसी तरह उनकी पुस्तकें आती रहेंगी। अगले चरण में डॉ. शैलजा सक्सेना ने उपस्थित लोगों को टिप्पणियों और प्रश्नों के लिए आमन्त्रित किया। डॉ. रेणुका शर्मा ने पुस्तक की भाषा के बारे कहा कि अगर हम हिन्दी को आम लोगों की भाषा बनाना चाहते हैं तो उसे सरल और आम भाषा की तरह प्रस्तुत करना होगा। अगर किसी अन्य भाषा के शब्द इसमें सहजता से आते हैं तो उसे स्वीकार करने से हिन्दी और समृद्ध होगी और यह पुस्तक इस सिद्धांत का पालन करती है। अंत में ‘मनु’ पुनः मंच पर आईं और कुछ अन्य रचनाओं का पाठ करते हुए प्रकाशन प्रक्रिया की चर्चा की। हिन्दी राइटर्स गिल्ड को धन्यवाद के साथ यह कार्यक्रम समाप्त हुआ। हिन्दी राइटर्स गिल्ड कैनेडा में हिन्दी साहित्य की एक शीर्ष संस्था है और अपनी मुक्त विचारधारा के लिए जानी जाती है।