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यादें ईरान की

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श्री विजय विक्रांत जी की पहली पुस्तक “यादें ईरान की” का विमोचन

श्री विजय विक्रांत जी की पहली पुस्तक “यादें ईरान की” का विमोचन
रिपोर्ट: डॉ. शैलजा सक्सेना
जुलाई 15, 2023 को हिन्दी राइटर्स गिल्ड कैनेडा ने संस्था के सह-संस्थापक श्री विजय विक्रांत जी की पहली पुस्तक “यादें कुईरान की” का विमोचन बहुत उत्साह और हर्ष के वातावरण में हुआ। इस पुस्तक का ई- प्रकाशन श्री सुमन मार घई जी ने अपनी कम्पनी पुस्तक बाज़ार.कॉम के माध्यम से किया है। यह कैनेडा से निकली संभवत: पहली संस्मरणात्मक पुस्तक है। यह हमारा सौभाग्य था कि इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करने के लिए भारत से अमेरिका आए हुए डॉ. योगेन्द्रनाथ शर्मा ’अरुण’ ने की। वे इस कार्यक्रम के लिए विशेषरूप से अमेरिका से आए थे। इस कार्यक्रम का प्रारंभ संस्था की सह-संस्थापक निदेशक डॉ. शैलजा सक्सेना, निदेशिका कृष्णा वर्मा और आशा बर्मन जी ने फूल और शॉल से आदरणीय ’अरुण’ और श्री विजय विक्रांत जी का स्वागत किया। इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए अरुण जी के बेट, बहू, पोती तथा मित्र भी आए थे। कार्यक्रम संचालक डॉ. नरेन्द्र ग्रोवर जी ने सभी उपस्थित लोगों का स्वागत किया। लोकार्पण के पश्चात अनेक विद्वानों ने पुस्तक पर अपने विचार रखे और विक्रांत जी को बधाई दी। कार्यक्रम के प्रारंभ में श्रीमती आशा बर्मन ने अपना और टोरंटो की वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती अचला दीप्ति कुमार जी का समवेत वक्तव्य रखा और पुस्तक को बोलचाल की भाषा, फ़ारसी के शब्दों का सहज प्रयोग करने वाली और ईरान के समाज की विस्तृत जानकारी देने वाली पुस्तक कहा। डॉ. रत्नाकर नराले जी ने कहा कि ऐतिहासिक संस्मरण पुस्तकों में इतिहास जो घटित हुआ और जो लिखा गया, उसके बीच अंतर कम होना चाहिए और विक्रांत जी ने यह किया। इसके बाद विक्रांत जी पुस्तक पर बोलते हुए बताया कि संस्मरण के लिए उन्होंने ईरान को ही क्यों लिया? ईरान की क्रांति में दंगों, जुलूसों को देखना और आम लोगों की भय और पीड़ा वैसी ही लगी जो विभाजन के बाद भारत में हुई थी जिसे उन्होंने अपने बाल्यपन में देखा था। आचार्य संदीप त्यागी ने ’अरुण’ जी को प्रणाम और स्वागत करते हुए उनके लिखे दोहे, जो उन्होंने उनके बाबा हरिसिंह त्यागी के लिए लिखे थे, वे सुनाये। फिर विजय विक्रांत जी के नाम की चर्चा करते हुए बताया कि जो विजय करके उतर रहा है वह विजय विक्रांत है। इस पुस्तक में वर्णित जीवन की यादोंको लिखने के पीछे की दार्शनिक भाव का विश्लेषण भी उन्होंने किया।
श्रीमती कृष्णा वर्मा जी ने पुस्तक के कुछ फ़ारसी शब्दों की चर्चा करते हुए कहा कि ये शब्द भारत के घरों में भी प्रचलित थे जैसे हल्दवाना- यानी तरबूज! उन्होंने कहा कि पाकिस्तान से आए अपने परिवार की अनेक यादें इस किताब से उभर आईं। डॉ. बंदिता सिन्हा ने कहा कि पुस्तक में यादों को मनकों की तरह पिरोया है। 17 से 20 भागों में अनेक यादें लिखीं और हर बात, संघर्ष को रोचक तरीके से लिखा। हर बात को विस्तार से लिखा है। उन्होंने उमर खैयाम की रूबाइयों की चर्चा भी की। इसके बाद श्रीमती कांता विक्रांत जी को भी कुछ कहने के लिए बुलाया गया, उन्होंने सबका धन्यवाद किया।
पीयूष श्रीवास्तव ने शुभम श्याम की कविता पढ़ी जिसमें ’नदिया जैसा बनना है तो पर्वत छॊड़ उतरना होगा’ की बहुत संदेशात्मक बात थी। श्री राज माहेश्वरी जी ने बधाई देते हुए कहा कि पहली पुस्तक के लिए बहुत मेहनत होती है और अगर पाठक उस पुस्तक से एक बात भी नई सीखे तो पैसे वसूल होते हैं। उन्होंने कहा कि वे हल्दवान और कई अन्य नये शब्द और बातें इस पुस्तक से जान सके, अत: यह सार्थक पुस्तक है। डॉ. शैलजा सक्सेना ने बधाई देते हुए इस पुस्तक की रचना और प्रकाशन प्रक्रिया में प्रारंभ से जुड़े रहने की बात करते हुए कहा कि संस्मरण साहित्य की अनमोल और सत्य विधा हैं अत: अपने समय और समाज से जुड़ी ये यादें संजोना लेखकों की सामाजिक ज़िम्मेदारी है। इसके बाद विक्रांत जी ने पुस्तक से कुछ हिस्से पढ़ कर सुनाये। श्री नरेन्द्र ग्रोवर ने पुस्तक से ईरान के समाज की अनमोल जानकारी मिलने की बात कहते हुए बधाई दी। कार्यक्रम के अंत में अध्यक्षता कर रहे डॉ. योगेन्द्रनाथ शर्मा ’अरुण’ जी ने इस पुस्तक के कथ्य और शिल्प दोनों की बहुत प्रशंसा की और विक्रांत जी को बड़े भाई कह कर अपनी आत्मीयता से मुग्ध कर लिया। उन्होंने कहा कि ईरान पर हिन्दी भाषा में कम सामग्री मिलती है और इसलिए भी यह पुस्तक मूल्यवान है। इसके बाद लगभग ४५ मिनट उन्होंने बहुत ही सुन्दर सस्वर अपने गीतों का पाठ किया। ये गीत जीवन, प्रेम, मानवीय मूल्यों और दार्शनिक उदत्तता से परिपूर्ण थे। ’अरुण’ जी का मुस्कुराते हुए, बुलंद स्वर में सुन्दर गीतों का पाठ करना सभी के लिए अनमोल यादगार बन गई। समय से एक घंटे ऊपर चलने पर भी इस कार्यक्रम में सभी ने आनंद लिया और विक्रांत जी के लाये जलपान का भी आनंद लिया। ’अरुण’ जी और उनका परिवार हमेशा के लिए हिन्दी राइटर्स गिल्ड कैनेडा के परिवार का हिस्सा बन गए। विक्रांत जी को पुस्तक विमोचन पर पुन: बधाई !

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