विश्वारंग 2020 कैनेडा 8 नवम्बर
विश्वरंग कैनेडा का प्रथम दिवस इतना सकारात्मक और रोचक रहा कि दूसरे दिन के लिए लोगों में उत्सुकता और अपेक्षा बन चुकी थी और दूसरा दिन ऐसा भव्य रहा भी। दिन की शुरुआत हुई दो ऐसे कैनेडियन हिंदी लेखकों से, जिन्हें विश्व भर में उनकी साहित्यिक रचनाओं और हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिए सम्मानित किया जा चुका है। ये नाम थे डॉ रत्नाकर नराले और श्रीमती स्नेह ठाकुर। ये दोनों हिंदी साहित्य जगत के बरगद के पेड़ की तरह हैं। दोनों का साहित्य सृजन इतना व्यापक और विविध रहा है कि एक पाठक या दर्शक के तौर पर जान पाना अत्यंत मुश्किल प्रतीत होता है कि एक जीवन काल में कोई व्यक्ति इतने सारे काम और इतने अच्छे गुणवत्ता के साथ कर कैसे सकता है। डॉक्टर नराले और श्रीमती ठाकुर की साहित्यिक यात्राओं से दर्शकों का परिचय अवश्य अत्यंत लाभप्रद रहा और साथ ही कार्यक्रम संचालिका डॉ शैलजा सक्सेना के शब्दों में कहें तो, उनके द्वारा हासिल किए गये सम्मानों से विश्व व कैनेडा का हिंदी समाज अत्यंत गौरवान्वित महसूस करता है। इसके पश्चात् बारी रही हिंदी की अति प्रचलित हो रही विधा लघु कथा की । कार्यक्रम का सफल संचालन किया कृष्णा वर्मा जी ने। प्रतिभागियों में पहला नाम था सुप्रसिद्ध कथाकार और रचनाकार श्री रामेश्वर कंबोज हिमांशु जी का। हिमांशु जी से चर्चा की शुरुआत इस बात पर की गई कि लघुकथा के अनिवार्य पहलू क्या हैं और लेखकों को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए और इस पर हिमांशु जी ने बहुत महत्वपूर्ण बातें समझायीं। तत्पश्चात् हिमांशु जी, भुवनेश्वरी पांडे जी, डॉक्टर शैलजा सक्सेना और अंततः कृष्णा वर्मा ने अपनी लघु कथाओं को दर्शकों व श्रोताओं के साथ साँझा किया। इनमें से प्रत्येक कहानी ऐसी थी जो श्रोताओं के दिलो- दिमाग पर अंकित हो जाए। कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए बागडोर संभाली विद्याभूषण धर ने और इस भाग का विषय कथेतर साहित्य था जिस में अन्य विधाओं जैसे आत्मकथा, संस्मरण, संपादकीय लेखन और व्यंग्य पर बातें हुईं। सुमन कुमार घई जो कि साहित्य कुंज का लंबे समय से नियमित संपादन करते आ रहे हैं, ने संपादन के महत्व और बारीकियों पर अपने विचार सामने रखे। इसी क्रम में बातचीत को आगे बढ़ाते हुए, अति सम्मानित साहित्यकार और संपादक श्री श्याम त्रिपाठी ने अपनी आत्मकथा का अंश रखते हुए चर्चा को और भी रोचक बनाया। विजय विक्रांत जी, जो सुमन जी के साथ ही हिंदी राइटर्स गिल्ड के संस्थापक निदेशक भी हैं, उन्होंने अपनी आगामी पुस्तक की चर्चा की और उसमें शामिल कुछ अपने संस्मरण अपनी युवा काल में ईरान प्रवास के समय के कुछ किस्से बताए, जो श्रोताओं को एक दूसरे ही धरातल पर ले जाते हैं। कथेतर विषयों की यह चर्चा समीर लाल ‘समीर’ जी की भागीदारी के बिना मुकम्मल नहीं हो सकती थी। ‘उड़नतश्तरी’ नाम से विख्यात ब्लॉग लेखक एवं रचनाकार समीर जी ने अपना व्यंग्य से जो लगाव है उसके पीछे की सच्चाई तो बताई ही, साथ ही अपनी एक व्यंग्य कथा भी पाठकों के सामने प्रस्तुत की जो दरअसल कोरोना काल के संदर्भ में लिखी हुई ताजी रचना थी। विद्याधर जी का संचालन काफी कुशल एवं सौहार्दपूर्ण रहा। कार्यक्रम के अगले यानी नवें सत्र में कविता की एक ऐसी शाम मानोशी चटर्जी ने संचालित की, जिसमें 13 कवियों की रचनाओं को उनके अंदाज में शामिल किया गया। इनमें शामिल थे- इंदिरा वर्मा, आशा वर्मन, सविता अग्रवाल, लता पांडे, डॉ कनिका वर्मा, पूनम चन्द्रा ‘मनु’, अंबिका शर्मा, डॉक्टर रेणुका शर्मा, आचार्य संदीप त्यागी, अखिल भंडारी, डॉ वीरेंद्र भारती, प्रीति अग्रवाल और मानोशी स्वयं। एक से बढ़कर एक ऐसी कविताओं का रसास्वादन करने का अवसर प्राप्त हुआ कि मन रोमांचित हो जाए। जहां साहित्य की इतनी बात हो रही हो वहां उससे जुड़ी हुई विधा फिल्म कैसे दूर रह सकती है। ड्रग समस्या के विषय पर आधारित एक लघु फिल्म “नेवर अगेन” को प्रदर्शित किया गया जिसे कैनेडियन हिंदी परिवार से जुड़े एक नामी शख्स डॉक्टर जगमोहन सांघा ने स्वयं रचा और बनाया। उन्होंने फिल्म के बारे में उसके कारणों और उसके पीछे के प्रयासों के बारे में चर्चा की। यह फिल्म कई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में प्रदर्शित की गई है, जो दर्शकों पर एक गहरी छाप और उनके लिए एक सटीक संदेश छोड़ जाती है। इस तरह से दूसरे दिवस में सारे सत्रों को समाप्त करने के बाद डॉक्टर शैलजा सक्सेना ने धन्यवाद ज्ञापन किया जिसमें उन्होंने विश्वरंग, कैनेडियन साहित्यिक समाज और टीम के सदस्यों और शुभचिंतकों के प्रति आभार व्यक्त किया। आगे के कार्यक्रमों में कैनेडा और आगे बढ़ कर हिस्सा लेगा, ऐसी कामनाओं के साथ शाम की समाप्ति हुई। पूरी आशा है कि यह आयोजन पूरे विश्व और खासकर भारत और कैनेडा में देखा और सराहा जाएगा। रिपोर्ट- संदीप कुमार सिंह इस कार्यक्रम का वीडियो देखने के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें: Click here