साहित्य कुंज आपकी प्रिय साहित्यिक पाक्षिक पत्रिका। हमारा पूरा प्रयास रहता है कि उत्कृष्ट साहित्य आपके लिए प्रस्तुत करें। परन्तु भावी लेखकों को प्रोत्साहित करने और उनका मार्गदर्शन करना भी इस ई-पत्रिका का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है
समीक्षक और सम्पादक सम्पादन की परिभाषा क्या है? मैं किताब में दी गई परिभाषा की बात नहीं करता; वह क्या है हम सब जानते हैं। परन्तु मैं व्यवहारिक परिभाषा की बात करता हूँ। प्रायः सम्पादकों के साथ इस विषय पर जब बात होती है तो कोई भी संतोषजनक उत्तर नहीं मिलता या यूँ कहूँ कि उत्तर से मुझे संतोष नहीं मिलता। संतोष क्यों नहीं मिलता – अब मैं आत्मविवेचन में उलझ जाता हूँ; अंतर्मुख हो, जितना विचार करता हूँ उतने ही अपने लिए प्रश्न खड़े कर लेता हूँ। क्या रचना का मूल्यांकन करते समय मैं उतना निष्पक्ष हो पाता हूँ जितना कि सम्पादक होना चाहिए? क्या मैं रचना को पढ़ते हुए अपने पूर्वाग्रहों को, अपनी अवधारणाओं को त्याग पाता हूँ? क्या मेरा सीमित साहित्यिक ज्ञान किसी की रचना को अस्वीकार करने का मुझे अधिकार देता है? सम्पादक की परिभाषा मुझे संशोधन, परिवर्तन या परिवर्धन इत्यादि का अधिकार देती है। क्या ऐसा करना लेखक के अधिकारों का अतिक्रमण नहीं है? अगर मैं केवल लेखक के अधिकारों और उनकी रचनात्मक स्वतंत्रता का आदर करता हूँ तो साहित्य कुञ्ज के पाठक वर्ग की भी तो कुछ अपेक्षाएँ हैं। प्रायः पाठक किसी पत्रिका विशेष की ओर केवल इसलिए आकर्षित होते हैं क्योंकि उसमें प्रकाशित साहित्य उनकी मानसिक और साहित्यिक पिपासा को तुष्ट करता है। परन्तु दूसरी ओर पाठकों के तुष्टीकरण में सम्पादकीय दायित्व को भी तो नहीं भुलाया जा सकता। ऐसे ही अन्य कई प्रश्न हैं जिन से मैं प्रतिदिन उलझता हूँ और संघर्ष करता हूँ।